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भारत की आज़ादी की नींव रखने वाले योद्धों में शामिल थे पंडित नेकीराम शर्मा

 

आलेख: कामरेड ओमप्रकाश  जिला उप प्रधान , किसान सभा भिवानी ।

पंडित नेकीराम शर्मा का जन्म 7 सितम्बर , 1887 में भिवानी के नजदीक के कैलंगा गांव में पिता पंडित हरिप्रसाद मिश्रा तथा माता बरजो देवी के घर हुआ। पंडित जी अपने मातापिता की चौथी संतान थे। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा गांव में ही अपने दादा पंडित पृथ्वी राम मिश्रा से प्राप्त की , जो संस्कृत व्याकरण के प्रख्यात विद्वान थे और रामचरितमानस का अच्छा ज्ञान था , वे गांव में ही धार्मिक रीति रिवाज का पारम्परिक काम धन्धा करके अपनी आजिविका चलाते थे । पंडित नेकीराम ने 11 वर्ष की आयु में ही अपने दादा से यह काम सीख लिया तथा उनकी मदद करने लगे । जब वे 13 वर्ष के हुए , उनके दादा नहीं रहे और अपने प्रथम गुरु के जाने के बाद उनकी इच्छानुसार पंडित जी ने आगे की पढ़ाई हेतु 1900 में विक्टोरिया संस्कृत पाठशाला सीतापुर में दाखिला ले लिया । उसके बाद क्वीन कालेज बनारस तथा अन्त में अयोध्या में पढ़ाई पूरी की । इसी दौरान बनारस में दिसम्बर 1905 में कांग्रेस का 21 वां सालाना अधिवेशन हो रहा था , उनकी मुलाकात राष्ट्रीय आन्दोलन के नेताओं गोपाल कृष्ण गोखले , बाल गंगाधर तिलक , लाला लाजपत राय , सुरेन्द्र नाथ बनर्जी , महामना मदनमोहन मालवीय और अधिवेशन में शामिल सैंकड़ों प्रतिनिधियों से हुई।

पंडित जी ने उनके देश की आजादी के लिए दिए जा रहे जोशिले भाषणों से अत्याधिक प्रभावित होकर आन्दोलन में कूदने का मन बना लिया । 16 अक्तूबर, 1905 को जब अंग्रेजों ने बंगाल का धर्म के आधार पर विभाजन कर दिया , तो पूरे देश में जनता के गुस्से की लहर चलने लगी और स्वराज , स्वदेशी आंदोलन चल पड़ा तथा अंग्रेजो का चौतरफा बायकाट होने लगा। इस तेजी से बदलते राजनीतिक वातावरण में पंडित जी अपनी शिक्षा पूरी करके 1907 में वापिस अपने गांव केलंगा आ गये और उन्होंने कन्या नन्हीं देवी से शादी कर ली , जो दादरी के पास रानीलावास गांव की रहने वाली थी ।

उन्होंने शुरू में अपना पैतृिक काम धन्धा शुरू किया परन्तु ज्यादा दिन उसमें मन नहीं लगा और राष्ट्रीय घटनाओं की सूचना साप्ताहिक अखबार श्री वैंकेटेशवर समाचार और अभ्युदय में पढ़ने से वे स्वतन्त्रता संग्राम में रुचि लेने लग गये और इन अखबारों में अपने लेख भी भेजने लगे । 1907 में लाला लाजपत राय और सरदार अजित सिंह को कठोर सजा तथा 22 जुलाई , 1908 को देशद्रोह के आरोप में बाल गंगाधर तिलक को छः वर्ष की कठोर सजा एक हजार जुर्माना के समाचार ने पंडित जी के दिल को झकझोर दिया ।

उस समय उन्होंने अंग्रेज सरकार की जन विरोधी नीतियों , किसानों का शोषण करने , ज्यादा कर वसूल करने , भंयकर अकाल पड़ने पर मदद नहीं करने की नीति पर विपत्ती पर विपत्ती नाम का लेख अभ्युदय वीकली में लिख दिया तो अंग्रेज अधिकारी उन पर आग बबूला हो गए और उन पर नजर रखने लगे । तत्कालीन रोहतक के डिप्टी कमीशनर श्रीमान जोसेफ ने गुस्से में आकर उनसे कहा कि इस देशद्रोह की कीमत जानते हो , पंडित जी ने निसंकोच होकर कहा कि हां सर , यह कीमत चुकाने के लिए तैयार हूं । फिर पुलिस कप्तान ने पंडित जी को अपने घर बुलाकर अपनी मेम साहब को कहा कि इस आदमी को देखो , यह इस इलाके में हमारे शासन में दखल देता है । बाद में जब पंडित जी उन अंग्रेज अफसरों के सामने नहीं झुके , तो उसी डिप्टी कमीशनर ने पंडित जी को 25 मुरब्बे जमीन मुफ्त देने की पेशकश की , ताकि वे आजादी के संघर्ष से दूर हट जांए , परन्तु पंडित जी टस से मस नहीं हुए और इस लालच को ठुकरा कर स्वतन्त्रता संग्राम में जोर शोर से लग गए तथा प्रतीज्ञा ली , जब तक अंग्रेजों को भारत से नहीं भगा देगें , तब तक अन्तिम सांस तक चैन से नहीं बैठेंगे ।

 

पंडित जी 1910 में कांग्रेस पार्टी में शामिल होकर स्वतन्त्रता संघर्ष में कूद पड़े । वे ऐनी बेसेन्त और बाल गंगाधर तिलक के साथ होम रूल लीग में शामिल होकर देश के विभिन्न हिस्सों में जागृति पैदा करvने लगे और इस अभियान में 30 जून 1918 को आसफ अली के साथ दिल्ली में गिरफ्तार कर लिए गए। वे इस आन्दोलन में पहले उतर भारतीय नेता थे । 30 मार्च ,1919 में पंडित जी के नेतृत्व में रोलेट कानून के विरोध में भिवानी बंद रखा गया । 1 अगस्त , 1920 को गांधी जी के नेतृत्व में देश व्यापी असहयोग आंदोलन शुरू हो गया और पंजाब के दक्षिण हिस्से में पंडित जी के नेतृत्व में लोगों ने इस आन्दोलन में बढ़चढ़ भाग लिया ।

 

इसी दौरान 22-24 अक्तूबर,1920 को भिवानी में पंडित जी के नेतृत्व में अम्बाला डिवीजनल राजनीतिक अधिवेशन हुआ , जिसमें 50 हजार लोगों ने भाग लिया , उसमें महात्मा गांधी , अली बन्धु , मौलाना अबुल क्लाम आजाद , स्वामी सत्यदेव व कस्तूरबा गांधी भिवानी पहुंचें , सबको नीचे पंडाल में बैठाया गया । यह आयोजन इतना शानदार अनुशासित था कि इसके लिए महात्मा गांधी ने पंडित जी भूरी भूरी प्रशंसा की। 

 

15-16 फरवरी ,1921 में हरियाणा ग्रामीण अधिवेशन भिवानी में करवाया गया , जिसमें 30 हजार से अधिक लोगों ने भाग लिया , इसमें भी महात्मा गांधी , कस्तूरबा गांधी , मौलाना अबुल कलाम आजाद , लाला लाजपत राय व लाला प्यारेलाल समेत अनेक राष्ट्रीय नेता शामिल हुए । भिवानी में इन दो बड़े आयोजना ने जिनमें चोटी के राष्ट्रीय नेता शामिल हुए , पंडित जी के कद को राष्ट्रीय बना दिया और अब भी भिवानी की तर्ज पर ही कांग्रेस अपनी राष्ट्रीय कार्यकारीणी की बैठक बगैर कुर्सियों के नीचे गद्दों पर बैठ कर करती है।

इस प्रकार से पंडित जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन 1930 में भाग लिया और उन्हें हिसार जेल में रखा गया । 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया , कुल मिलाकर वे आजादी के आन्दोलन के दौरान 2200 दिन जेल में रहे , जेल में रहने के कारण उनके कई तरह की बीमारियां लग गई । वे आजादी के योद्धा होने के साथ साथ प्रबल समाज सुधारक भी थे , उन्होंने बेगार प्रथा , महिलाओं में पर्दा प्रथा , बाल विवाह, जाति प्रथा , दहेज इत्यादि सामाजिक कुरितियों का डट कर विरोध किया तथा विधवा विवाह का पक्ष लेकर उस समय के समाज में तहलका मचा दिया।

जब पंडित जी जेल में थे , तब उनकी एक बेटी का देहांत होगया , वे पेरोल पर नहीं आए , जब उनके अकेले बेटे की शादी थी , वे पेरोल पर नहीं आए , अंग्रेज अधिकारी उनको इन अवसरों पर पेरोल देना चाहते थे , परन्तु वे यह कहते हुए नहीं आए कि वे अंग्रेजों का ऐसान नहीं लेना चाहते । महिलाओं में .पर्दा हटाने का अभियान उन्होंने अपने घर से अपनी पुत्रवधु से शुरू किया । जब गांधी जी के आहवान पर वे अनुसूचित जाति वर्ग के मोहल्लों में जाकर सफाई करते , उनके घरों में साथ बैठकर खाना खाते , तब पंडित जी को जाति बहिष्कार का सामना करना पड़ा और उनकी कई बार जाति के लोगों ने पिटाई की ।

पंडित जी एक बहुत बड़े किसान नेता भी थे , उन्होंने 1929 में भिवानी में अलखपुरा गांव के चौधरी लाजपत राय से मिलकर किसान सभा का गठन किया तथा हांसी के अंग्रेज जागीरदार स्कीनर बन्धुओं के खिलाफ जोरदार लड़ाई लड़के उस इलाके के 20 गांव के मुजारे किसानों को जमीनें दिलवाई थी , इस दौरान कई किसान शहीद हुए थे तथा इन दोनों किसान नेताओं ने कई बार जेल काटी । लोहारू रियासत के विरुद्ध भी चलाए जा रहे किसान आन्दोलन को भी इन दोनों किसान नेताओं ने भारी मदद की थी । भाखड़ा बांध बनवाने में पंडित जी ने उल्लेखनीय योगदान दिया था।

पंडित जी के एक लड़का मोहन कृष्ण शर्मा और चार बेटियां थी , दो बेटों और तीन बेटियों की बचपन में मृत्यु हो गई कुल 10 बच्चे थे । पंडित जी देश की आजादी में व्यस्त तथा जेल होने के कारण परिवार को बहुत आर्थिक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा । उन्होंने अपने परिवार के किसी सदस्य को अपनी जगह राजनीति में आने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया और नहीं अपनी राष्ट्रीय स्तर पर जान पहचान का फायदा दिया।

पंडित नेकीराम शर्मा ऐसे देशभक्त थे, जिन्होंने ईमानदारी से त्याग और संघर्ष का जीवन जीया , कभी भी लोभ लालच नहीं किया और राष्ट्रीय नेता होने के वाऊजूद महात्मा गांधी की तरह सत्ता की राजनीति से दूर रहे । जीवन में दूसरों को चुनाव लड़वाए , स्वयं चुनाव नहीं लड़ा । उनके जीवन में एक समय ऐसा रहा , जब वे हिन्दू महासभा के 1920 से 1927 तक राष्ट्रीय नेता रहे , परन्तु 1928 में हिन्दू महासभा ने साइमन कमीशन का विरोध नहीं किया , तब पंडित जी ने उन्हें अलविदा कह दिया । उनके लिए यह अवधि उनके राष्ट्रीय व्यक्तित्व व समाज सुधारक के तौर पर उनके जीवन पर नकारात्मक प्रभाव छोड गई । अतः पंडित जी के संघर्षमयी व त्यागी जीवन से हमारी युवा पीढ़ी प्रेरणा ले और उनके जीवन को जरूर पढ़े । ऐसे महापुरूष स्वतन्त्रता आन्दोलन की देन है , जो संघर्षों की भट्टी में तैयार होते हैं , नमन है उनके संघर्ष को । मैं भाग्यशाली हूं , उन द्वारा बनाई गई किसान सभा में काम कर रहा हूं।

 

 

 

 

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