बेबाक बोल: ओबीसी आरक्षण के बिना महिला आरक्षण बिल अधूरा !
लोकसभा में राहुल गांधी ने ओबीसी के मुद्दे पर सेंगोलधारी फर्जी ओबीसी की सरकार की बखिया उधेड़ दी . राहुल गांधी ने कहा कि ओबीसी आरक्षण के बिना महिला आरक्षण बिल अधूरा है. और ये ओबीसी का अपमान है. राहुल गांधी ने महिला आरक्षण बिल और जाति जनगणना को ट्रांसफर ऑफ पावर टू पीपल बताते हुए ओबीसी आरक्षण की मांग की. दरअसल कांग्रेस ने 2010 के अपने स्टैंड में बदलाव करते हुए स्पेशल सेशन के पहले ही दिन से नरेंद्र मोदी को सामाजिक न्याय की बिसात पर चेकमेट किया हुआ है.
पहले मल्लिकार्जुन खरगे साहब, फिर सोनिया जी और फिर राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी को ओबीसी के हितों के मुद्दे पर घेर दिया है. सेंगोलधारी नरेंद्र मोदी को अब ये साबित करना होगा कि वे ओबीसी विरोधी नहीं हैं. 2024 की चुनावी जंग से पहले महिला आरक्षण बिल के जरिए सनसनी फैलाकर वोट बटोरने का तनातनी प्लान बैकफायर कर गया है. महिला आरक्षण बिल में ओबीसी के लिए कोटे के भीतर कोटा को लेकर कांग्रेस के स्टैंड का अंदाजा महामानव भी नहीं लगा पाए हैं.
अभी तो रूकिए क्लाइमेक्स अभी बाकी है.
20 सितंबर की शाम को सामाजिक न्याय की नई आवाज ने सदन में ही हंगामा कर रहे भाजपाइयों से कहा कि डरो मत! और जाति जनगणना कराओ, लोगों को ध्यान मत भटकाओ. राहुल गांधी ने कहा कि केंद्र सरकार के 90 सचिवों में सिर्फ 3 ओबीसी के हैं, इसे बदलिए और जाति जनगणना कराइए…
ओम बिड़ला ने जब कहा कि महिला आरक्षण बिल और जाति जनगणना अलग विषय है तो राहुल गांधी ने कहा कि नहीं, ये दोनों ही चीजें ट्रांसफर ऑफ पावर टू पीपल हैं. यही नहीं राहुल गांधी ने संसद की नई बिल्डिंग की दरी, डिजाइन, फर्श और चमकती छत की तारीफ करते हुए कहा कि ये सब बढ़िया है, लेकिन इस सदन में राष्ट्रपति महोदया द्रौपदी मुर्मू कहां हैं?
राहुल गांधी के इस सवाल पर आदिवासी हितैषी होने का ढोंग करने वाले बगले झांकते नजर आए हैं… कांग्रेस ये बात समझ गई है कि आने वाले दौर की राजनीति ओबीसी की राजनीति है, और इस मुद्दे पर वो पीछे नहीं हटने वाली है. आपको बता दूं कि कांग्रेस इस समय जिस तेजी के साथ फैसले ले रही है, वो बताता है कि उसकी तैयारी एक पूरी है. चंद उदाहरण के लिए जानिए कि चाहे भोपाल में इंडिया की मीटिंग चेंज करना हो या ओबीसी के मुद्दे पर अपना स्टैंड… फैसले एकदम रणनीतिक हैं और निशाना 2024 है… और महामानव इसका अंदाजा नहीं लगा पा रहे हैं…
सामाजिक न्याय को नई आवाज मुबारक…
मुसलमानों की एक बड़ी आबादी ओबीसी का हिस्सा है। अगर महिला आरक्षण बिल में ओबीसी को आरक्षण मिलता तो निश्चित तौर पर संसद में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बढ़ता। याद रखिए कि भाजपा ने लोकसभा के चुनाव में 2014 और 2019 में कोई भी मुस्लिम कैंडिडेट मैदान में नहीं उतारा था। यह बताता है कि मुसलमानों को लेकर बीजेपी क्या सोचती है। ये एक तरह की नफरत ही है, जो देश की 20 फीसदी आबादी को हाशिए पर धकेलती है। और मुसलमानों को संसद और विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व नहीं देना चाहती। ओबीसी को आरक्षण ना दिए जाने को इस एंगल से भी समझिए।
मौजूदा लोकसभा में मुस्लिम प्रतिनिधित्व ऐतिहासिक रूप से कम है। थैंक्स टू सत्ताधारी पार्टी… जो मुस्लिमों को टिकट नहीं देती है। ओवैसी को छोड़ दिया जाए तो लोकसभा में प्रखर मुस्लिम आवाज नहीं है। आजम खान की सदस्यता किस तरह खत्म की गई आप सब जानते हैं… लड़ाई इसी नफरत के खिलाफ है… नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलिए… देश का सेकुलर ढांचा बचाने की जिम्मेदारी दलितों और पिछड़ों के कंधों पर है।
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