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देश-दुनियाराजनीति

“एक देश एक चुनाव” चुनौती ही नहीं असंभव दीखता है, फिर भी इसे लागू करने चाहते हैं मोदी जी !

एक देश एक चुनाव से संबंधित विधेयक संविधान संशोधन विधेयक होगा। ऐसे में इसे पारित कराने के लिए सरकार को दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत की जरूरत होगी। ऐसे में सरकार को खासतौर पर राज्यसभा में विधेयक के समर्थन के लिए नए साथियों की तलाश करनी होगी, क्योंकि भाजपा को अपने दम पर सामान्य बहुमत भी यहां हासिल नहीं है। अबतक जरूरी विधेयकों पर सरकार को बीजेडी, वाईएसआरसीपी, टीडीपी जैसे दलों का साथ मिलता रहा है। क्या इस मुद्दे पर ये पार्टियां बीजेपी का साथ दे पाएंगी ! इस मुद्दे पर सिर्फ संविधान में संशोधन ही काफी नहीं होगा, राज्यों की मंजूरी भी चाहिए होगी सम्भवतया सभी राज्यों की।

देश में एक साथ चुनाव कराने की बहस पुरानी है। राष्ट्रपति बनने के बाद कोविंद ने इसका समर्थन किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बहस को नए सिरे से शुरू किया है। उन्होंने राज्यसभा में अपने भाषण के अलावा भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति में भी अलग-अलग चुनाव होने के कारण विकास कार्यों पर पड़ने वाले प्रतिकूल असर का हवाला देते हुए एक साथ चुनाव की हिमायत की थी। इस बीच, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने शुक्रवार को पूर्व राष्ट्रपति कोविंद से दिल्ली में उनके घर पर मुलाकात कर एक राष्ट्र एक चुनाव की व्यवहारिकता पर चर्चा की।

एक संसदीय समिति पहले ही चुनाव आयोग समेत विभिन्न हितधारकों के परामर्श कर इस मुद्दे पर विचार कर चुकी है। समिति ने इस संबंध में कुछ सिफारिशें की हैं। अब एक साथ चुनाव के लिए ‘व्यावहारिक रोडमैप और रूपरेखा’ तैयार करने के लिए मामला विधि आयोग को भेजा गया है।

“एक देश एक चुनाव” के समर्थन में तर्क
हर साल 5-6 राज्यों में चुनाव पड़ जाते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन के समर्थकों का कहना है कि इससे विकास कार्यों में बाधा पड़ती है। जैसे कि ओडिशा में 2004 के बाद से चारों विधानसभा चुनाव, लोकसभा चुनाव के साथ हुए और उसमें नतीजे भी अलग-अलग रहे। वहां आचार संहिता बहुत कम देर के लिए लागू होती है, जिसकी वजह से सरकार के कामकाज में दूसरे राज्यों के मुकाबले कम खलल पड़ता है।

विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ होते हैं तो चुनाव पर होने वाले खर्च में कमी आएगी !
हालाँकि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अगस्त 2018 में लॉ कमीशन की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि 2019 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ होते हैं, तो उससे 4,500 करोड़ रुपए का खर्च बढ़ेगा। ये खर्चा इसलिए क्योंकि EVM ज्यादा लगानी पड़ेंगी। इसमें ये भी कहा गया था कि साथ चुनाव कराने का सिलसिला लगातार जारी रहता है तो 2024 में 1,751 करोड़ रुपए का खर्च बढ़ता। यानी, धीरे-धीरे ये एक्स्ट्रा खर्च कम होता जायेगा।

विरोध में तर्क
कानून के जानकारों के मुताबिक विधि आयोग ने इस बारे में संशोधनों के विवरण के साथ अप्रैल, 2018 में पब्लिक नोटिस जारी किया था। विधि आयोग के अनुसार वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव से संविधान के अनुच्छेद 328 पर भी प्रभाव पड़ेगा, जिसके लिए अधिकतम राज्यों का अनुमोदन लेना पड़ सकता है।

संविधान के अनुच्छेद 368(2) के अनुसार, ऐसे संशोधन के लिए न्यूनतम 50% राज्यों के अनुमोदन की जरूरत होती है, लेकिन ‘एक देश, एक चुनाव’ के तहत हर राज्य की विधानसभा के अधिकार और कार्यक्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं।

इसलिए इस मामले में सभी राज्यों की विधानसभाओं से अनुमोदन लेने की जरूरत पड़ सकती है। इसके बाद जनप्रतिनिधित्व कानून समेत कई दूसरे कानून में संशोधन करने होंगे।

संविधान संशोधन की होगी जरूरत

  • 30 अगस्त 2018 में न्यायमूर्ति बीएस चौहान की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने भी कहा कि संविधान के मौजूदा ढांचे के तहत देश में वन नेशन वन इलेक्शन नहीं करा सकते हैं। इसके लिए संविधान का जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में बदलाव की जरूरत होगी। इसके अलावा लोकसभा व विधानसभाओं के संचालन के लिए बने नियमों में भी संशोधन की आवश्यकता होगी।संविधान का अनुच्छेद 83 कहता है कि लोकसभा और विधानसभा का कार्यकाल पांच साल का होगा। ऐसे में पहली बार एक साथ चुनाव कराने के लिए इस अनुच्छेद में संशोधन जरूरी है।
  • अनुच्छेद 83(2) में कहा गया है कि विधानसभा का कार्यकाल एक बार में एक साल ही बढ़ाया जा सकता है।
  • अनुच्छेद 85 में राष्ट्रपति को समय से पहले लोकसभा भंग करने का अधिकार दिया गया है।
  • अनुच्छेद 172 में विधानसभा का कार्यकाल पांच वर्ष निश्चित किया गया है।
  • अनुच्छेद 174 के तहत राष्ट्रपति को लोकसभा और राज्यपाल को विधानसभा भंग करने का अधिकार दिया गया है।
  • अनुच्छेद 356 में राज्यपाल की सिफारिश पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने का प्रावधान है। एक देश एक चुनाव के लिए संविधान के इन सभी अनुच्छेदों में संशोधन करना होगा।

 

 

विपक्षी नेताओं ने शुक्रवार को ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की संभावना का अध्ययन करने के लिए समिति गठित करने के केंद्र सरकार के कदम की आलोचना की और आरोप लगाया कि यह देश के संघीय ढांचे के लिए खतरा पैदा करेगा। विपक्ष ने कहा, इंडिया गठबंधन ने सत्तारूढ़ भाजपा को परेशान कर दिया है, जिसके कारण सरकार को विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराने की संभावना तलाशने के लिए मजबूर होना पड़ा।

सीपीआई नेता डी राजा ने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा भारत को लोकतंत्र की जननी होने की बात करते हैं, लेकिन सरकार ने अन्य राजनीतिक दलों से चर्चा किए बिना एकतरफा फैसला लिया है। यह देश के संघीय ढांचे के लिए खतरा है। कांग्रेस नेता कमलनाथ ने कहा, केंद्र सिर्फ संविधान में संशोधन नहीं कर सकता, उन्हें राज्यों की मंजूरी भी चाहिए।

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