सर्वखाप पंचायत की कोर कमेटी ने बैठक कर समाज में फैलती जा रही कुछ बुराइयों पर चिंतन किया और गहन विचार विमर्श के बाद सर्व खाप संयोजक महिंदर सिंह नांदल और प्रवक्ता जगबीर मलिक ने बयान जारी कर कहा है कि 12 नवंबर देवउठनी एकादशी से शादियों का सीजन शुरू हो चुका है, चारों तरफ बजती शहनाइयां ,डी जे और पटाखों का शोर शादियों के आगमन की सूचना दे रहा, हैं। कुछ वर्षों पहले तक शादियां आमतौर पर दिन में शरद ऋतु के प्रारंभ होते ही या फागुन मास के बाद गर्मियां शुरू होने पर आयोजित की जाती थी। बारात गांव की चौपाल में पहुंचती थी ,जहां पर दुल्हन के परिवारजन और गांव के गणमान्य व्यक्ति बारात की अगवानी करते थे ।बारात की हर प्रकार की सुख सुविधाओं और सम्मान का पूरा ख्याल रखा जाता था । सादा देशी भोजन प्यार और प्रेम से बनाया होता था । जिसे बाराती और गांव के लोग प्यार प्रेम के साथ गृहण करते थे ।वे मन भर कर जमकर भोजन करते थे । लेकिन कण भर भी भोजन जूठन के रूप में पत्तल या थाली में नही छोड़ते थे। सभी लोग अन्न का दिल से सम्मान करते थे । उन्होंने कभी भी अन्न देव को जूठन के रूप में बर्बाद नहीं होने दिया। सर्व खाप ने चिंता व्यक्त करते हुए अपने बयान में बताया है कि 10 वर्ष पहले तक शादियों में किसी प्रकार की शराब या किसी अन्य प्रकार के नशे का खुलकर उपयोग नहीं किया जाता था । लोग बड़े बुजुर्गों की शर्म व सम्मान के चलते इसके सेवन से बचते थे।अगर कोई शराब पीने वाला या नशा करने वाला व्यक्ति बारात में होता था तो उसका बारात के समझदार व्यक्ति विशेष ख्याल रखते थे कि कहीं ये व्यक्ति नशा करके कोई ऐसी हरकत ना कर दें जिससे बारातियों और दूल्हे के परिवार का नाम बदनाम या अपमान न हो । लेकिन आज आधुनिकता और दिखावे के चलते जो सामाजिक परिवर्तन हो रहे हैं, साथ ही लोगों की माली हालत में सुधार के कारण शादियां चौपालों की बजाय l
बड़े-बड़े वेंकट हालों में बड़े दिखावे के साथ रात के समय होने लगी हैं । जिन में बड़े पैमाने पर धन की फिजूल खर्ची से सैकड़ों प्रकार के व्यजनों के साथ-साथ शराब रुपी नशे का खुलकर प्रयोग होने लगा है। देर रात तक बाराती और अतिथि भोजन से पहले शराब या अन्य पेय पदार्थों का सेवन करते रहते हैं । बड़ी देर रात में भोजन करते हैं । उस समय तक पेय पदार्थो और अन्य खाद्य पदार्थों के सेवन और भोजन का समय न रहने के कारण उनकी भूख लगभग शांत हो चुकी होती है। लेकिन लजीज भोजन देखकर वे प्लेटें भर भर कर भोजन ले लेते हैं और मन भरते ही खाने की भरी प्लेट को जूठन के रूप में छोड़कर कूड़ेदान में डाल देते हैं या टेबल पर ही छोड़कर चलते बनते हैं । इस शादी महाभोज के प्रबंधन में बेटी या बेटे के पिता और परिवार ने अपनी जीवन भर की कमाई लगाई है ,उसका झूठन रुप में तिरस्कार कर ये लोग अन्न देव का भी अपमान करते हैं। अन्न के अपमान और बर्बादी जैसी कार्यवाही केवल हमारे देश में ही होती हैं । पश्चिमी देशों में होटल या वेंकट हालों में जहां पर इस प्रकार के कार्यक्रम होते हैं वहां भोजन की बर्बादी करने वालों पर अनुशासनात्मक और दंडात्मक कार्रवाई की जाती है । अन्न की झूठन रूप में बर्बादी करने वालों पर भारी दण्ड लगाया जाता है। भोजन बर्बादी से बचने के लिए हमारे देश में भी पश्चिमी देशों की तरह भोजन अनुशासन होना चाहिए। अनुशासन दंडात्मक की अपेक्षा स्वअनुशासनात्मक हो तो बहुत अच्छा रहता है । भोजन उतना ही लेवें जितना आप खा सकते हैं । अन्न को किसी भी तरह जूठन के रूप में न छोड़े,क्योंकि हमारे देश के साथ-साथ गरीब अफ्रीकी देशों में भोजन के अभाव में हर साल लाखों लोगों के प्राण जा रहे हैं ।
कई सामाजिक संस्थाएं भोजन की बर्बादी और नशे से दूर रहने के लिए लोगों को शिक्षित करने में लगी हुई हैं । हम सबका एक सभ्य समाज के सदस्य होने के नाते कर्तव्य बनता है कि हम इस में यज्ञ में अपना पूर्ण सहयोग दें ।
*सर्वखाप पंचायत * इस जनहित और समाज हित के कार्य में अपनी बैठकों में जनहित के फैसले लेकर लोगों से लगातार अनुरोध करती रहती है कि खर्चीली और चमक धमक वाली रात की शादियों से परहेज करें। शादियां दहेज रहित सादगी के साथ दिन में करें। शादियों में किसी भी प्रकार के नशे या शराब की व्यवस्था न करें और न इसके उपयोग की अनुमति दें। शादियों में आज जो धन और अन्न की बर्बादी हो रही है, उसे किसी गरीब की बेटी के ब्याह में दान…