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13 नवम्बर की  हरियाणा विधानसभा की बैठक  शीतकालीन सत्र नहीं बल्कि गत 25 अक्टूबर को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित सदन की ही अगली बैठक 

 
विधाई मामलों के जानकार अधिवक्ता की क़ानूनी राय
चूँकि 25 अक्टूबर के बाद  राज्यपाल द्वारा नहीं किया गया  सत्रावसान, अत:  स्पीकर स्वयं सदन की  अगली बैठक बुलाने के लिए सक्षम — एडवोकेट
 
 
हालांकि अगर  13 नवम्बर से पूर्व हरियाणा सरकार को किसी कारणवश राज्यपाल से जारी कराना पड़ा अध्यादेश, तो उससे पहले  विधानसभा का सत्रावसान आवश्यक — हेमंत कुमार  
 
चंडीगढ़ — आगामी 13 नवम्बर बुधवार को सुबह 11 बजे  हरियाणा विधानसभा की अगली बैठक बुलाई  गई है. जहाँ कुछ इसे  हाल ही में गठित  15वीं हरियाणा विधानसभा का प्रथम सत्र कह रहे हैं वहीं कईयों द्वारा  इसे शीतकालीन सत्र के नाम से भी संबोधित किया जा रहा है.
बहरहाल, इस विषय पर पंजाब एवं हरियाणा  हाईकोर्ट के एडवोकेट एवं संसदीय मामलों के जानकार हेमंत कुमार  ने बताया कि गत माह 9 अक्टूबर को मौजूदा 15वीं हरियाणा विधानसभा का विधिवत गठन हो गया था जब भारतीय चुनाव आयोग द्वारा आर.पी. एक्ट, 1973 की धारा 73 के अंतर्गत  सभी 90 निर्वाचित विधायकों की निर्वाचन नोटिफिकेशन प्रकाशित कर दी गयी थी. इसके बाद हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 174(1) के अंतर्गत जारी आदेश मार्फ़त   25 अक्टूबर को नव-गठित प्रदेश  विधानसभा का  प्रथम  सत्र बुलाया गया था  जिसमें  राज्यपाल द्वारा विशेष रूप से नियुक्त कार्यवाहक (प्रो-टेम) स्पीकर डॉ. रघुवीर  सिंह कादयान  द्वारा  नव-निर्वाचित विधानसभा सदस्यों  को विधायक पद की  शपथ दिलाई गई एवं/अथवा प्रतिज्ञान कराया गया जिसके बाद  सदन द्वारा सर्वसम्मति से  करनाल जिले के  घरौंडा वि.स. हलके से  भाजपा   विधायक   हरविंद्र कल्याण को विधानसभा अध्यक्ष  अर्थात स्पीकर एवं जींद   से  भाजपा विधायक  डॉ. कृष्ण लाल  मिड्डा को  उपाध्यक्ष (डिप्टी स्पीकर) चुन लिया गया. सदन की उपरोक्त   कार्यवाही सम्पन्न होने के उपरान्त स्पीकर हरविंद्र कल्याण द्वारा  हरियाणा विधानसभा को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया था. यह पूछे जाने पर कि क्या प्रोटेम स्पीकर द्वारा नव-निर्वाचित विधायकों की  शपथ या प्रतिज्ञान और विधानसभा स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का  चुनाव  भी हरियाणा विधानसभा के प्रथम सत्र की कार्यवाही होगी, उन्होंने बताया कि राज्यपाल द्वारा विधानसभा सदन  बुलाने के बाद हाउस में जो कुछ भी होगा, वह  सदन की  कार्यवाही ही है.
हेमंत ने बताया कि हालांकि ध्यान देने योग्य यह है  कि आज दस दिन बीत जाने के बाद भी राज्यपाल द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 174(2)(ए) के अंतर्गत हरियाणा  विधानसभा का सत्रावसान नहीं किया गया है जिसका अर्थ है कि 25 अक्टूबर को हरियाणा वि.स. का बुलाया गया पहला सत्र आज भी तकनीकी तौर पर  चालू/जारी है बेशक उसे स्पीकर द्वारा अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया. ऐसा परिस्थिति में वि.स. सदन की अगली बैठक बुलाने के लिए राज्यपाल को ताज़ा सिरे से आदेश नहीं जारी करना होता बल्कि स्पीकर ही  हरियाणा वि.स. के प्रक्रिया एवं कार्य संचालन संबंधी नियमावली के नियम 16 के दूसरे परन्तुक के अंतर्गत इस प्रकार से  अनिश्चित काल के लिए स्थगित सदन की अगली बैठक बुला सकता है. मंगलवार 5 नवम्बर को स्पीकर हरविन्द्र कल्याण द्वारा भी ऐसा ही किया गया है. वैसे भी चूँकि आम चुनाव सम्पन्न होने के बाद बुलाये गये  प्रथम सत्र के आरम्भ में राज्यपाल का अभिभाषण भारतीय संविधान के अनुच्छेद 176(1) के अंतर्गत आवश्यक करना आवश्यक  है, इसलिए हरियाणा सरकार बिना ऐसा अभिभाषण कराये  विधानसभा का राज्यपाल से सत्रावसान नहीं करा सकती थी.

हेमंत ने   बताया कि स्पीकर द्वारा  विधानसभा  को   अनिश्चितकाल के लिए स्थगित होने के बाद हालांकि   राज्यपाल द्वारा  सत्रावसान नहीं किये जाने से वि.स. सदन को  तकनीकी तौर पर चालू ही समझा जाता है. ऐसा करने का यह प्रभाव अवश्य होता है  कि हरियाणा सरकार  इस दौरान  कोई भी नया अध्यादेश प्रदेश के राज्यपाल द्वारा जारी नहीं करवा सकती है  क्योंकि अध्यादेश तभी जारी कराया  जा सकता है जब सदन न चल रहा हो. इसलिए अगर आगामी 13 नवम्बर से पूर्व अगर  हरियाणा सरकार को किसी तत्काल आवश्यकता या अपरिहार्य परिस्थितियों कारण राज्यपाल से कोई अध्यादेश जारी कराना  होगा, तो उससे पहले राज्यपाल से मौजूदा चालू  विधानसभा सत्र का सत्रावसान करवाना आवश्यक होगा.इस संबंध में हेमंत ने एक उदाहरण देते हुए   बताया कि  मार्च, 1997 में हरियाणा में बंसी लाल के नेतृत्व वाली   हविपा-भाजपा गठबंधन सरकार के दौरान भी  विधानसभा के तत्कालीन बजट सत्र का तब के  राज्यपाल महावीर प्रसाद द्वारा सत्रावसान नहीं किया गया था एवं इसी बीच मई ,1997 में बंसी लाल सरकार ने राज्यपाल से दो अध्यादेश जारी करवा लिए परंतु कुछ दिनों में ही दो नई नोटिफिकेशन जारी कर उन दोनों जारी अध्यादेशों को सरकार को  खारिज करवाना पड़ा था क्योंकि सदन के सत्रावसान हुए बगैर कोई भी अध्यादेश जारी नहीं करवाया जा सकता. इस कारण तत्कालीन बंसी लाल  सरकार की काफी फजीहत ही  हुई थी.

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