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सुप्रीम कोर्ट की सलाह मान निचली अदालत उचित मामलों में जमानत दें तो अदालतों में लंबित मामलों की सुनवाई में तेज़ी आएगी और जेलों पर सरकार का खर्च भी कम होगा

गुस्ताखी माफ़ हरियाणापवन कुमार बंसल।

केजरीवाल को जमानत-सेशन और हाई कोर्ट से इनकार के बाद सुप्रीम कोर्ट से- भारी फीस और खर्च।
केजरीवाल जी और दूसरे नेताओं ने पहले सेशन कोर्ट और फिर हाई कोर्ट में जमानत के लिए आवेदन किया। उन्हें जमानत नहीं मिली। फिर वे सुप्रीम कोर्ट चले गए। भारी कानूनी फीस के बारे में बात नहीं करते। अब सुप्रीम कोर्ट ने दो आधारों पर जमानत दी है।
1. जमानत देना अपवाद है।
2. केस में बहुत लंबा समय लगेगा और आरोपी को इतने लंबे समय तक जेल में रखना न्यायसंगत नहीं है।
अब इस केस को पूरी तरह कानूनी दृष्टि से देखने की जरूरत है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि सेशन कोर्ट और हाई कोर्ट ने उन्हीं आधारों पर जमानत क्यों नहीं दी, जिन पर सुप्रीम कोर्ट ने दी। दूसरे शब्दों में, किसी व्यक्ति को न्याय पाने के लिए सबसे बड़ी अदालत क्यों जाना पड़ता है। निचली अदालतें अपने स्तर पर उसी न्याय से इनकार क्यों कर रही हैं।
सीजेआई ने अपने व्याख्यानों में कई बार कहा है कि जमानत याचिका को केवल असाधारण परिस्थितियों में ही खारिज किया जाना चाहिए और यदि निचली अदालतें उचित मामलों में जमानत देना शुरू कर दें, तो उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित मामलों का बोझ काफी कम हो जाएगा और अतिरिक्त लाभ भी होगा। भाल सिंह मलिक एडवोकेट ने एक बार चंडीगढ़ उच्च न्यायालय में जमानत याचिका के एक मामले में यही मुद्दा उठाया था। उन्होंने कहा था कि न्यायपालिका का मतलब बार और बेंच दोनों है। न्यायालय ने सैद्धांतिक रूप से सहमति व्यक्त की थी कि उचित मामलों में निचली अदालतों को जमानत देनी चाहिए। यह पूरी तरह से कानूनी मामला है। अब उच्च और सर्वोच्च न्यायालयों के बार इस मुद्दे को नहीं उठा रहे हैं, क्योंकि इससे मुवक्किलों की संख्या कम होने की संभावना है। वर्तमान में जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या लाखों में है। यदि उचित मामलों में जमानत दी जाती है, तो जेलों पर सरकार का खर्च भी कम होगा।

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