साधना के प्रकाश में बाबा का सफर: ब्रह्मांडीय तरंगों और आत्मिक शांति का गूढ़ संबंध
ईश्वरीय तरंगों का प्रभाव: ऋषिपुत्र का दावा
चंडीगढ़, 28 दिसंबर संजय मिश्रा :- प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु ऋषिपुत्र ने हाल ही में यह चौंकाने वाला दावा किया है कि ब्रह्मांड में निरंतर गतिशील अनेकों प्रकार की तरंगें मौजूद हैं। इन्हें वे “ईश्वरीय तरंगें” कहते हैं, जो खगोलीय स्थितियों के अनुसार बदलती रहती हैं। उनके अनुसार, हमारी आत्मिक शांति और आनंद इन्हीं तरंगों पर निर्भर करता है।
ऋषिपुत्र का कहना है कि ध्यान-साधना के अभाव में ये ईश्वरीय तरंगें हमारे चेतन और अवचेतन मन पर गहरा प्रभाव डालती हैं। यह प्रभाव हमारे प्रारब्ध और दैनिक कर्मों से प्रभावित होता है। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि हमारे कर्म भी इन ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं से गहराई से जुड़े हुए हैं।
जहां वैज्ञानिक समुदाय ने अब तक इस दावे पर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं दी है, वहीं कुछ आध्यात्मिक गुरुओं ने इसका समर्थन किया है। ऋषिपुत्र का यह विचार आध्यात्मिक जगत में एक नई बहस का विषय बन सकता है ऋषिपुत्र का मानना है कि मानव मात्र एक सामाजिक प्राणी नहीं है, बल्कि पूरे ब्रह्मांड का अभिन्न हिस्सा है। जैसे सूर्य, चंद्रमा और तारे अपनी-अपनी भूमिकाएं निभा रहे हैं, वैसे ही हम भी एक विशाल व्यवस्था का हिस्सा हैं। उनका कहना है कि ब्रह्मांड की ऊर्जाएं हमारी भावनाओं और जीवन को प्रभावित करती हैं।
ध्यान-साधना के माध्यम से इन ऊर्जाओं का लाभ उठाया जा सकता है। यह न केवल आत्मा को शुद्ध करता है, बल्कि समाज की सेवा का सबसे बड़ा मार्ग भी बनता है।बाबा ऋषिपुत्र के अनुसार, साधना केवल आत्मा की शुद्धि का माध्यम नहीं है, बल्कि यह संसार को एक नई दिशा देने का मार्ग भी है। उन्होंने बताया कि ध्यान और तपस्या के जरिए आत्मा को प्रकाशित कर, हम दूसरों के जीवन में भी उजाला ला सकते हैं।
एक गृहस्थ साधक ने अपने जीवन के अनुभव साझा करते हुए बताया कि ऋषि परंपरा के प्रति उनकी आस्था ने उन्हें आत्मिक आनंद और शांति प्रदान की। उन्होंने कहा, “भारत की पावन धरा पर जन्म लेना मेरे लिए सौभाग्य है। यह मेरा कर्तव्य है कि मैं अपने ज्ञान को सभी तक पहुंचाऊं और ऋषि परंपरा को आगे बढ़ाऊं।
साधक ने बताया कि कलियुग के अंधकार में भी कुछ दिव्य आत्माएं ऋषि परंपरा को जीवित रखने का प्रयास कर रही हैं। उनका कहना है कि साधना न केवल आत्मज्ञान प्राप्त करने में मदद करती है, बल्कि समाज को भी सुधारने का मार्ग दिखाती है।
साधक ने यह भी बताया कि जैसे वायु में विभिन्न प्रकार की गैसें होती हैं, वैसे ही दैविक तरंगें भी विभिन्न प्रकार की होती हैं। ये तरंगें हमारी कुंडलिनी शक्ति, इंगला, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों के स्पंदन और वेग को प्रभावित करती हैं। ध्यान-साधना की प्रगति इन तरंगों के साथ हमारे सामंजस्य पर निर्भर करती है।
साधना के माध्यम से आत्मा को शुद्ध कर समाज और ब्रह्मांड को नई दिशा दी जा सकती है। ऋषिपुत्र और गृहस्थ साधक का संदेश हमें प्रेरित करता है कि हम अपनी भूमिका ईमानदारी और लगन से निभाएं, ध्यान-साधना को अपनाएं, और आत्मिक व सामाजिक प्रगति की ओर कदम बढ़ाएं।