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सांग से होती है हरियाणवी संस्कृति की पहचान: हनुमान कौशिक

भिवानी, 11 नवंबर। आज का युवा मोबाइल के कारण हमारी प्राचीन संस्कृति, सभ्यता व संस्कारों से दूर होता जा रहा है। जब से मोबाइल ने प्रवेश किया है तब से युवा पीढ़ी के पास न तो अपने माता-पिता व न ही बड़े बुजुर्गों के पास बैठ कर उनका हालचाल जानने व कहानियां-किस्से सुनने का समय है। पहले लोगों के मनोरंजन का साधन सांग व लोकगाथाएं होती थी। जिनके माध्यम से हमें हमारी संस्कृति और परंपराओं की पहचान होती थी। यह बात म्हारी संस्कृति म्हारा स्वाभिमान संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हनुमान कौशिक ने गांव धारेडू में आयोजित सांग समारोह के दौरान उपस्थित लोगों से बातचीत करते हुए कही। हनुमान कौशिक ने कहा कि सांग एक ऐसी विधा है जिसको सूर्य कवि पंडित लख्मीचंद, पंडित मांगेराम, बाजे भगत तथा धनपत सिंह निंदाना ने सांग की असली गायन शैली में लोगों का न  केवल मनोरंजन किया बल्कि पौराणिक और आध्यात्मिक विचारधारा से अवगत करवाया। प्राचीन जमाने के राजाओं-महाराजाओं के किस्से कहानियां भी सांग के माध्यम से हमारे समक्ष प्रस्तुत किए हैं। जिससे समाज को अच्छी  दिशा मिली, प्रेम और भाईचारे का सामाजिक समावेश हुआ। इस दौरान प्रधान ओमप्रकाश शर्मा मदीना को हनुमान कौशिक व पंडित विष्णु दत्त द्वारा सूर्य कवि पंडित लख्मीचंद ग्रंथावली भेंट कर उनका स्वागत किया गया। सूर्य कवि पंडित लख्मीचंद के सुपौत्र पंडित विष्णु दत्त जांटी ने कहा कि दादा पंडित लख्मीचंद ने शाही लकड़हारा, सेठ ताराचंद, गोपीचंद भरथरी, पूर्णमल, राजा नल दमयंती, पद्मावत जैसे सांग अपनी लेखनी से लिखे और लोगों के अंदर प्रचारीत और प्रसारीत किए जिन्हें आज भी लोग उमंग व उत्साह के साथ देखते व सुनते हैं। मेरा मानना है कि सांग को सही विधा के साथ किया जाए तो आज भी सामाजिक, व्यवहारीक और पारिवारिक उन्माद इस प्रकार के सांग देखकर समाप्त किए जा सकते  हैं। हम चाहेंगे की हमारी आने वाली पीढ़ी इस बात पर ध्यान देकर अपनी प्राचीन सभ्यता को अपनाने में अग्रसर होगी। इस अवसर पर डा. सुरेन्द्र कादियान बडेसरा, हर्ष लांबा, धर्मवीर नागर, सरपंच बजरंग धारेडू, भुरा फौजी उमरावत, ईश्वर उमरावत, सुभाष  उमरावत, सुनील शर्मा उमरावत समेत अनेक संस्कृति प्रेमी उपस्थित रहे।

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