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वैश्य साज को पिछलग्गू कहने वालो पर भारी पडेगा ये विधानसभा चुनाव

  • वैश्य साज को पिछलग्गू कहने वालो पर भारी पडेगा ये विधानसभा चुनाव
  • अपने समुदाय का वोट प्रतिशत बढाने की रणनीति पर काम कर रहा है अग्रवाल वैश्य समाज

चंडीगढ़ ~निरज सिगला
सभी राजनीतिक दलों द्वारा हरियाणा विधानसभा चुनाव में वैश्य समाज की की गई अनदेखी के चलते राजनीतिक दलों के प्रति समाज के लोगों में रोष व्याप्त है।
राजनीतिक दलों ने इस बार जिस प्रकार से वैश्य समाज की अनदेखी की है, वह किसी से छिपी नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने टिकट समाज के लोगों को दी थी लेकिन इस बार केवल पांच टिकट समाज के लोगों को देने का काम किया है। कांग्रेस ने भी पिछले विधानसभा चुनाव में पांच टिकट देने का काम किया था लेकिन इस बार कांग्रेस ने केवल दो टिकट देने का काम किया है। आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो और प्रदेश अध्यक्ष दोनों ही वैश्य समाज से आते हैं लेकिन आम आदमी पार्टी ने भी हरियाणा में केवल तीन टिकट समाज के लोगों को देने का काम किया है। कांग्रेस की तर्ज पर इनेलो बसपा गठबंधन और जेजेपी-एएसपी ने भी 2-2 सीटों पर वैश्य उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं।
राजनीतिक दलों ने जिस प्रकार से समाज को ठेंगा दिखाने का काम किया है उससे समाज के लोगों में गहरा रोष व्याप्त है। समाज के लोगों का गुस्सा साफ देखा जा सकता है और यह गुस्सा इस बार वोट की चोट करने का काम भी करेगा। पिछले चुनाव में समाज 50 से 60% मतदान करता रहा है लेकिन इस बार इस गुस्से की वजह से मतदान प्रतिशत 70 से 80 होने की उम्मीद है। समाज से जुड़े लोगों का कहना है कि राजनीतिक दलों ने समाज को हाशिये पर धकेलना का काम किया है और अगर समाज अब नहीं जागा तो उसके पास मुंह दिखाने की जगह भी नहीं बचेगी।
समाज के लोगों की एकता का ही परिणाम है कि जींद से कांग्रेस के महावीर गुप्ता और फरीदाबाद से भाजपा के विपुल गोयल व भिवानी से घनश्याम सराफ की जीत निश्चित मानी जा रही है। हिसार से सावित्री जिंदल, गुरुग्राम से नवीन गोयल और सिरसा से गोपाल कांडा विरोधी कांग्रेस व भाजपा के उम्मीदवारों पर भारी पड़ रहे हैं। इनमें गोपाल कांडा जहां अपनी पार्टी हलोपा की टिकट पर मैदान में है वही नवीन गोयल और सावित्री जिंदल निर्दलीय मैदान में है। पानीपत ग्रामीण में विजय जैन लाडवा में संदीप गर्ग और सोनीपत में राजीव जैन तिकोना मुकाबलों में चुनाव लड़ रहे हैं और यह तीनों चुनाव जीतने की स्थिति में आ सकते हैं।
वैश्य समाज के लोगों ने पिछले दिनों अलग-अलग संगठनों के बैनर तले अनेक प्रोग्राम किए और हर राजनीतिक दल से 15 टिकटों की मांग की। समाज के लोगों ने सभी राजनीतिक दलों को वह सूची भी उपलब्ध करवाई जहां समाज के लोग बड़ी संख्या में है और हार जीत को निर्धारित करने का काम करते हैं, समाज के लोगों को उम्मीद थी कि कम से कम 10-10 टिकट राजनीतिक दल समाज को देने का काम करेंगे लेकिन राजनीतिक दलों ने वैश्य समाज को पूरी तरह से राजनीति से दरकिनार करने का काम कर दिया। कांग्रेस के एक बडे नेता ने तो वैश्य समुदाय के लिए टिप्पणी की पार्टी जिसे भी टिकट देगी उसी के पिछलग्गू हो जाते है। इस लिए भी इस विधानसभा चुनाव में वैश्य समुदाय के कम से कम 6 निर्दलीय उम्मीदवार चुनावी रन मे जीताने के लिए रणनीति बनाई है। जिस प्रकार से राजनीतिक दलों ने टिकट में कटौती की है वह इस बात का सूचक है कि राजनीतिक दल यह मानते हैं कि वैश्य समाज के लोग केवल लंच और मंच की व्यवस्था करने के लिए ही हैं। समाज में आया परिवर्तन मतदान के समय दिखाई देने वाला है।

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