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माता-पिता की सेवा व चरण स्पर्श सबसे बड़ा तीर्थ: रामाचार्य

राजेंद्र कुमार
सिरसा l  बिश्नोई सभा सिरसा के 49वें स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक कार्यक्रम के तहत श्री गुरु जंभेश्वर मंदिर परिसर में चल रही जांभाणी हरिकथा में दूसरे दिन आचार्य स्वामी रामाचार्य महाराज ने मां की महिमा का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि माता-पिता के चरण स्पर्श व सेवा सबसे बड़ा तीर्थ है। संबंधों में मां का पद बहुत बड़ा है। संतान उत्पति, उसके लालन-पोषण से से लेकर उसकी हर उन्नति व अच्छे जीवन के लिए लगातार प्रयासरत रहती है। श्री गुरु जांभोजी ने भी अपनी वाणी में मां की इस भूमिका के संदर्भ में माता कुंती का जिक्र किया है कि उन्होंने धर्मराज युधिष्ठिर को जन्म दिया। स्वामी जी ने इसी संदर्भ में धु्रव-भगत की माता का भी उल्लेख किया।

कथा में आचार्य स्वामी जी ने गुरु महाराज के इस धरा धाम पर आने का प्रायोजन भी बताया कि भगत प्रहलाद को दिए वचनों अनुसार 12 कोटि जीवों के उद्धार के लिए आना पड़ा। उन्होंने कहा कि 29 धर्मों की आचार संहिता किसी एक समुदाय विशेष के लिए नहीं, बल्कि पूरी मानव जाति के लिए है। यह तो मानव धर्म है। 29 नियम व शबदवाणी अनुसार जीवन यापन करने वाला हर मानव युक्तिपूर्वक जीवन व्यतीत करता है तथा मृत्युपरांत मोक्ष की प्राप्ति करता है। कथा के दौरान स्वामी जी ने दान की महिमा भी बताई।

 

इंसान करोड़ों-अरबों रुपए कमाए, परंतु मृत्युपरांत वो उसके साथ नहीं जाते, परंतु यदि वह अपने जीवन काल में समाज हित व धर्म के कार्यों में पैसा दान करता है तो इस प्रकार के पुण्य मनुष्य के साथ जाते हंै। आज के कार्यक्रम में सभा द्वारा श्रीकृष्ण गौशाला, जंडवाला बिश्नोइयान के सचिव सुरेश सहारण को स मानित किया गया। विद्यालयों में अवकाश के कारण रविवार को कथा में सैकड़ों महिलाओं-पुरुषों के साथ-साथ बच्चों ने भी बड़ी संख्या में भाग लिया।

 

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