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बाबू-बेटा ही लड़ रहे थे कांग्रेस का चुनाव बाकि सारे पार्टी की गोभी खोदण म्हैं लाग रे थे: डॉ. ओमप्रकाश धनखड़ राष्ट्रिय अध्यक्ष धनखड़ खाप

मैं कुछ पेड “पतलचाट यूट्यूबर” और एजेंट नेताओं से पूछना चाहता हूं कि महाराष्ट्र में तो कोई बाबू बेटा भी नहीं थे?: डॉ. ओमप्रकाश धनखड़ 

सर्वखाप के संयोजक और धनखड़ खाप के राष्ट्रिय अध्यक्ष डॉ. ओमप्रकाश धनखड़ ने हरियाणा कांग्रेस की हार के पीछे भूपेंद्र हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा को दोषी बताये जाने पर कुछ पेड तथाकथित यूट्यूबर और एजेंट नेताओं को खूब खरी- खोटी सुनाई है डॉ. धनखड़ ने कहा कि मैं इन

मैं कुछ पेड पतलचाट यूट्यूबर और एजेंट नेताओं से पूछना चाहता हूं कि महाराष्ट्र में तो कोई बाबू बेटा भी नहीं थे?

बाबू बेटा बाबू बेटा करने वाले ये उन बाप बेटा की मेहनत की बदौलत ही हरियाणा में अकेले इतनी कांग्रेस की सीट (37 सीट) आई हैं लगभग जितनी महाराष्ट्र, झारखंड और जम्मू कश्मीर तीनों राज्यों की मिलाकर (38 सीट) आई हैं। हरियाणा में कांग्रेस की वोट प्रतिशत 40% के करीब बीजेपी के लगभग बराबर आई हैं। जबकि महाराष्ट्र में कांग्रेस गठबंधन की सिर्फ 34% (कांग्रेस 11.57%) वोट आई हैं बीजेपी गठबंधन की 49% (बीजेपी 26.19%) वोट आई हैं। महाराष्ट्र में लोकसभा में तो कांग्रेस गठबंधन के 48 में से 31 सांसद थे अब 288 विधानसभा सीट में सिर्फ 46 सीट आई हैं, कांग्रेस गठबंधन में 101 सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र 16 सीटों पर चुनाव जीतने में कामयाब हुई है हरियाणा में 90 में से 37 सीट, महाराष्ट्र में जीत का स्ट्राइक रेट 16% और हरियाणा में 41% से ज्यादा, अब किसका कसूर काढ़ोगे?

महाराष्ट्र में तो कांग्रेस पार्टी किसी एक परिवार की पार्टी भी नहीं थी?
महाराष्ट्र में तो एक नहीं बल्कि तीन तीन पार्टियों के साथ गठबंधन भी था
महाराष्ट्र में तो किसी एक आदमी ने 72 टिकटें भी नहीं बांटी थी
महाराष्ट्र में तो किसी नेता में अहंकार नहीं हुआ होगा?
महाराष्ट्र में तो कोई फ्री हैंड नहीं होगा
जिनका हरियाणा में अपमान होने की बात कह रहे थे उसका महाराष्ट्र में तो अपमान नहीं हुआ होगा वहां तो पूरी इज्जत और सम्मान दिया था l मगर फिर भी महाराष्ट्र में पार्टी की इतनी बुरी हार क्यों?

जो लोग बाबू बेटा बाबू बेटा बाबू बेटे की पार्टी का प्रचार दिन रात चला रहे थे यानी वो सब मानते हैं कि अकेले बाबू बेटा ही चुनाव लड़ रहे थे और किसी ने साथ दिया नहीं उल्टा साथ देने की बजाय पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाले बयान तक दे रहे थे, तब भी सिर्फ बाबू बेटा ही संघर्ष कर रहे थे बीजेपी से लड़ाई लड़ रहे थे यहां तो अकेले बाबू बेटा ही थे जबकि वहां तो 3- 4 पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ रही थी, इतने सारे नेता थे सब मिलकर लड़ रहे थे यहां तो सिर्फ बाबू बेटा ही थे जो इतनी सारी वोट लोगों की लड़ाई लड़कर लेकर आए हैं, बीजेपी के बराबर वोट देने वाले लोगों की भावनाओं का अपमान तो ना करो, उनका सम्मान करो बाबू बेटा को बीजेपी के 56 लाख वोटों के लगभग बराबर 56 लाख ही वोट दे रखी हैं 36 बिरादरी ने, जाट समाज की तो 40% में से मात्र 13% वोट ही कांग्रेस को मिली हैं बाकी 27% तो सभी बिरादरी ने दे रखी हैं। जाट समाज ने टोटल में से 53% कांग्रेस 28% बीजपी और 19% अन्य को वोट दी, अगर लोकसभा की तरह अकेले जाट समाज एकजुट होकर 70% वोट कांग्रेस को दे देता तो सुरते हाल अलग होती हरियाणा में, 52-53 सीटों के साथ कांग्रेस की सरकार होती, बहरहाल जबकि चारों राज्यों में कोई एक नेता बता दो जो हुड्डा साहब की तरह छत्तीस बिरादरी में मजबूत हो, हुड्डा साहब ही सबसे कद्दावर नेता थे उन्हीं के बल पर हरियाणा में बीजेपी के बराबर वोट आई हैं वो अलग मामला है कि हम चुनाव हार गए उसके लिए बीजेपी के तमाम हथकंडों षड्यंत्रों को श्रेय देना चाहिए कि कैसे धन के बल पर छल किया निर्दलीय खड़े कर वोट बांटे, evm का दुरुपयोग धन के बल पर वोट खरीदे, सारे मर्यादाओं को ताक पर रखकर सजायाफ्ता बाबाओं का सहारा लिया, यंत्र तंत्र का खुलकर दुरूपयोग किया, लोकतंत्र का चीर हरण किया उसके बाद भी लोगों का बाबू बेटे को इतना आशीर्वाद मिला, कि सत्तादल के बराबर वोट आए हैं नंबर गेम में बेशक पिछड़ गए लोगों के प्रेम में नहीं पिछड़े। दीपेंद्र हुड्डा तो वो नेता है जो पूरे हरियाणा में सबसे अधिक वोटों से जीता था और देश में राहुल गांधी के बाद दूसरे नंबर पर सबसे अधिक मार्जन से जीतने वाला कांग्रेस का नेता, विधानसभा में चौ.भूपेंद्र सिंह हुड्डा ऐसे नेता हैं जो पूरे प्रदेश में दूसरे सबसे बड़े मार्जन से जीतने वाले नेता हैं लोगों ने कांग्रेस को खुलकर वोट दी हैं दे रखी हैं उन वोट देने वाले वोटर्स का अनादर अपमान तो मत करो उनके ऊपर अंगुली उठाने वाले नेता दरअसल खुद अपने ऊपर केअंगुली उठा रहे हैं कहीं ना कहीं उनको भी पता है इसके *मैं कुछ पेड पतलचाट यूट्यूबर और एजेंट नेताओं से पूछना चाहता हूं कि महाराष्ट्र में तो कोई बाबू बेटा भी नहीं थे?

बाबू बेटा बाबू बेटा करने वाले ये उन बाप बेटा की मेहनत की बदौलत ही हरियाणा में अकेले इतनी कांग्रेस की सीट (37 सीट) आई हैं लगभग जितनी महाराष्ट्र, झारखंड और जम्मू कश्मीर तीनों राज्यों की मिलाकर (38 सीट) आई हैं। हरियाणा में कांग्रेस की वोट प्रतिशत 40% के करीब बीजेपी के लगभग बराबर आई हैं। जबकि महाराष्ट्र में कांग्रेस गठबंधन की सिर्फ 34% (कांग्रेस 11.57%) वोट आई हैं बीजेपी गठबंधन की 49% (बीजेपी 26.19%) वोट आई हैं। महाराष्ट्र में लोकसभा में तो कांग्रेस गठबंधन के 48 में से 31 सांसद थे अब 288 विधानसभा सीट में सिर्फ 46 सीट आई हैं, कांग्रेस गठबंधन में 101 सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र 16 सीटों पर चुनाव जीतने में कामयाब हुई है हरियाणा में 90 में से 37 सीट, महाराष्ट्र में जीत का स्ट्राइक रेट 16% और हरियाणा में 41% से ज्यादा, अब किसका कसूर काढ़ोगे?

  • महाराष्ट्र में तो कांग्रेस पार्टी किसी एक परिवार की पार्टी भी नहीं थी?
  • महाराष्ट्र में तो एक नहीं बल्कि तीन तीन पार्टियों के साथ गठबंधन भी था
  • महाराष्ट्र में तो किसी एक आदमी ने 72 टिकटें भी नहीं बांटी थी
  • महाराष्ट्र में तो किसी नेता में अहंकार नहीं हुआ होगा?
    महाराष्ट्र में तो कोई फ्री हैंड नहीं होगा
  • जिनका हरियाणा में अपमान होने की बात कह रहे थे उसका महाराष्ट्र में तो अपमान नहीं हुआ होगा वहां तो पूरी इज्जत और सम्मान दिया था
  • मगर फिर भी महाराष्ट्र में पार्टी की इतनी बुरी हार क्यों?
 
अकेले बाबू बेटा ही चुनाव लड़ रहे थे l

जो लोग बाबू बेटा बाबू बेटा बाबू बेटे की पार्टी का प्रचार दिन रात चला रहे थे यानी वो सब मानते हैं कि अकेले बाबू बेटा ही चुनाव लड़ रहे थे और किसी ने साथ दिया नहीं उल्टा साथ देने की बजाय पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाले बयान तक दे रहे थे, तब भी सिर्फ बाबू बेटा ही संघर्ष कर रहे थे बीजेपी से लड़ाई लड़ रहे थे यहां तो अकेले बाबू बेटा ही थे जबकि वहां तो 3- 4 पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ रही थी, इतने सारे नेता थे सब मिलकर लड़ रहे थे यहां तो सिर्फ बाबू बेटा ही थे जो इतनी सारी वोट लोगों की लड़ाई लड़कर लेकर आए हैं, बीजेपी के बराबर वोट देने वाले लोगों की भावनाओं का अपमान तो ना करो, उनका सम्मान करो बाबू बेटा को बीजेपी के 56 लाख वोटों के लगभग बराबर 56 लाख ही वोट दे रखी हैं 36 बिरादरी ने, जाट समाज की तो 40% में से मात्र 13% वोट ही कांग्रेस को मिली हैं बाकी 27% तो सभी बिरादरी ने दे रखी हैं। जाट समाज ने टोटल में से 53% कांग्रेस 28% बीजपी और 19% अन्य को वोट दी, अगर लोकसभा की तरह अकेले जाट समाज एकजुट होकर 70% वोट कांग्रेस को दे देता तो सुरते हाल अलग होती हरियाणा में, 52-53 सीटों के साथ कांग्रेस की सरकार होती, बहरहाल जबकि चारों राज्यों में कोई एक नेता बता दो जो हुड्डा साहब की तरह छत्तीस बिरादरी में मजबूत हो, हुड्डा साहब ही सबसे कद्दावर नेता थे उन्हीं के बल पर हरियाणा में बीजेपी के बराबर वोट आई हैं वो अलग मामला है कि हम चुनाव हार गए उसके लिए बीजेपी के तमाम हथकंडों षड्यंत्रों को श्रेय देना चाहिए कि कैसे धन के बल पर छल किया निर्दलीय खड़े कर वोट बांटे, evm का दुरुपयोग धन के बल पर वोट खरीदे, सारे मर्यादाओं को ताक पर रखकर सजायाफ्ता बाबाओं का सहारा लिया, यंत्र तंत्र का खुलकर दुरूपयोग किया, लोकतंत्र का चीर हरण किया उसके बाद भी लोगों का बाबू बेटे को इतना आशीर्वाद मिला, कि सत्तादल के बराबर वोट आए हैं नंबर गेम में बेशक पिछड़ गए लोगों के प्रेम में नहीं पिछड़े। दीपेंद्र हुड्डा तो वो नेता है जो पूरे हरियाणा में सबसे अधिक वोटों से जीता था और देश में राहुल गांधी के बाद दूसरे नंबर पर सबसे अधिक मार्जन से जीतने वाला कांग्रेस का नेता, विधानसभा में चौ.भूपेंद्र सिंह हुड्डा ऐसे नेता हैं जो पूरे प्रदेश में दूसरे सबसे बड़े मार्जन से जीतने वाले नेता हैं लोगों ने कांग्रेस को खुलकर वोट दी हैं दे रखी हैं उन वोट देने वाले वोटर्स का अनादर अपमान तो मत करो उनके ऊपर अंगुली उठाने वाले नेता दरअसल खुद अपने ऊपर अंगुली उठा रहे हैं कहीं ना कहीं उनको भी पता है इसके लिए वो खुद ही जिम्मेदार हैं।

यानी सब मानते हैं कि अकेले बाबू बेटा ही चुनाव लड़ रहे थे और किसी ने साथ दिया नहीं उल्टा साथ देने की बजाय पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाले बयान तक दे रहे थे

जो लोग बाबू बेटा बाबू बेटा बाबू बेटे की पार्टी का प्रचार दिन रात चला रहे थे यानी वो सब मानते हैं कि अकेले बाबू बेटा ही चुनाव लड़ रहे थे और किसी ने साथ दिया नहीं उल्टा साथ देने की बजाय पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाले बयान तक दे रहे थे, तब भी सिर्फ बाबू बेटा ही संघर्ष कर रहे थे बीजेपी से लड़ाई लड़ रहे थे यहां तो अकेले बाबू बेटा ही थे जबकि वहां तो 3- 4 पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ रही थी, इतने सारे नेता थे सब मिलकर लड़ रहे थे यहां तो सिर्फ बाबू बेटा ही थे जो इतनी सारी वोट लोगों की लड़ाई लड़कर लेकर आए हैं, बीजेपी के बराबर वोट देने वाले लोगों की भावनाओं का अपमान तो ना करो, उनका सम्मान करो बाबू बेटा को बीजेपी के 56 लाख वोटों के लगभग बराबर 56 लाख ही वोट दे रखी हैं 36 बिरादरी ने, जाट समाज की तो 40% में से मात्र 13% वोट ही कांग्रेस को मिली हैं बाकी 27% तो सभी बिरादरी ने दे रखी हैं। जाट समाज ने टोटल में से 53% कांग्रेस 28% बीजपी और 19% अन्य को वोट दी, अगर लोकसभा की तरह अकेले जाट समाज एकजुट होकर 70% वोट कांग्रेस को दे देता तो सुरते हाल अलग होती हरियाणा में, 52-53 सीटों के साथ कांग्रेस की सरकार होती, बहरहाल जबकि चारों राज्यों में कोई एक नेता बता दो जो हुड्डा साहब की तरह छत्तीस बिरादरी में मजबूत हो, हुड्डा साहब ही सबसे कद्दावर नेता थे उन्हीं के बल पर हरियाणा में बीजेपी के बराबर वोट आई हैं वो अलग मामला है कि हम चुनाव हार गए उसके लिए बीजेपी के तमाम हथकंडों षड्यंत्रों को श्रेय देना चाहिए कि कैसे धन के बल पर छल किया निर्दलीय खड़े कर वोट बांटे, evm का दुरुपयोग धन के बल पर वोट खरीदे, सारे मर्यादाओं को ताक पर रखकर सजायाफ्ता बाबाओं का सहारा लिया, यंत्र तंत्र का खुलकर दुरूपयोग किया, लोकतंत्र का चीर हरण किया उसके बाद भी लोगों का बाबू बेटे को इतना आशीर्वाद मिला, कि सत्तादल के बराबर वोट आए हैं नंबर गेम में बेशक पिछड़ गए लोगों के प्रेम में नहीं पिछड़े। दीपेंद्र हुड्डा तो वो नेता है जो पूरे हरियाणा में सबसे अधिक वोटों से जीता था और देश में राहुल गांधी के बाद दूसरे नंबर पर सबसे अधिक मार्जन से जीतने वाला कांग्रेस का नेता, विधानसभा में चौ.भूपेंद्र सिंह हुड्डा ऐसे नेता हैं जो पूरे प्रदेश में दूसरे सबसे बड़े मार्जन से जीतने वाले नेता हैं लोगों ने कांग्रेस को खुलकर वोट दी हैं दे रखी हैं उन वोट देने वाले वोटर्स का अनादर अपमान तो मत करो उनके ऊपर अंगुली उठाने वाले नेता दरअसल खुद अपने ऊपर अंगुली उठा रहे हैं कहीं ना कहीं उनको भी पता है इसके लिए वो खुद ही जिम्मेदार हैं।

महाराष्ट्र से तो हरियाणा का चुनाव परिणाम ही सौ गुणा अच्छा और प्रभावी रहा है*लिए वो खुद ही जिम्मेदार हैं।

*महाराष्ट्र से तो हरियाणा का चुनाव परिणाम ही सौ गुणा अच्छा और प्रभावी रहा है
हरियाणा की जनता ने अपनी तरफ से आरएसएस बीजेपी और इसके सहयोगियों को खदेड़ने के लिए भरपूर वोट दी है आरएसएस बीजेपी को वोट डालने वाला कोई भी चाहे कर्मचारी वर्ग हो, किसान वर्ग हो मजदूर वर्ग हो कमेरा वर्ग हो, पेंशनर, डॉक्टर, इंजीनियर, टीचर, पटवारी, सरपंच, बालवाड़ी, सभी तो इस सरकार की पुलिस के लट्ठ खा चुके थे तो भला इनको वोट क्यों देते? किसी ने इस आरएसएस बीजेपी को वोट नहीं दी। गड़बड़ है तो केवल चुनाव आयोग के द्वारा बढ़ाई गई वोट परसेंटेज % और शासन प्रशासन के अधिकारियों से मिलकर के दबाव बनाकर के मेनू प्लेटेड रिजल्ट तैयार करना। उन 14 लाख वोट का डिस्ट्रीब्यूशन हुआ है, जहां जिसको जिताना चाहा उसको जीता दिया, जहां जिसको हराना चाहा हरा दिया। फिर भी अगर किसी पत्तल चाट या यूट्यूबर को कोई शक हो तो चुनाव आयोग से मांग करें किसी एक कांस्टीट्यूएंसी हरियाणा की उठा लो और उस कांस्टीट्यूएंसी के हस्ताक्षर रजिस्टर, हर बूथ के वोटर के सिग्नेचर वाला रजिस्टर उठाकर के टोटल वोट्स पोल्ड का और बोगस वोट पोल्ड का ईवीएम मशीन वी वी पैड की पर्चियां का मिलान करके भला देख तो ले, मिलान हो ही नहीं सकता, क्योंकि 14 लाख वोट बढी पाई गई है। एक्चुअल रिजल्ट तो हस्ताक्षर रजिस्टर ही देगा कि उस बूथ में कितनी वोट पोल हुई है और किस-किस ने वोट डाली है बोगस है या ठीक?सारी घपले बाजी पकड़ी जा सकती है। हर बूथ का हस्ताक्षर रजिस्टर चाहे बोगस वोट डलवाए गए हो या घटाएं तथा बढ़ाएं गए हो सब पकड़ में आ जाएंगे गहरी जांच का विषय है।
इस आरएसएस बीजेपी सरकार और चुनाव आयोग तथा न्यायपालिका के कुछ जजों की मिली भगत से अमृतकाल की रेवड़ी खाने से ही जनता के वोट का अधिकार को समाप्त कर दिया गया है तथा ऐसा लगता है। कि भारतीय संविधान और लोकतंत्र खतरे की तरफ धकेला जा रहा है। इस सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारतवर्ष को कॉरपोरेट्स के हवाले करके, गर्त में डुबोया जा रहा है। कोरिया चीन रूस साउथ अफ्रीका की तरह एक तंत्र शासन स्थापित करने की गहरी साजिश रची जा सकती है!

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