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पिता को देख कार्तिक ने ऐसे पकड़ी घोड़े की लगाम बन गया नामी घुड़सवार …..12 साल की उम्र में कई मेडल झोली में… हरियाणा का नाम देश में रोशन….अब तमन्ना देश का नाम चमकाने की

कल्पना वशिष्ठ चंडीगढ़।

,गुरुग्राम। गुरुग्राम के सिलोखरा गांव का 12 वर्षीय कार्तिक शर्मा अब परिचय का मोहताज नहीं है। ये वो वीर बालक है जिसने घुड़सवारी जैसे अतिकठिन खेल में बालकपन में ही मेडल्स की झड़ी लगा दी। दरअसल, कार्तिक शर्मा अपने पिता हरीश शर्मा के साथ घुड़सवारी पर जाता है। पिता हरीश शर्मा को घुड़सवारी का शौक है। कार्तिक रोज ग्राउंड में देखता तो उसने भी मन में घुड़सवार बनने की ठान ली। पिता ने बेटे का पूरा साथ दिया और अकादमी में जाने माने कोच को सौंप दिया। वर्डीनंद इक्वेस्ट्रियन अकादमी बिजवासन दिल्ली में कोच कप्तान सुनील कुमार, हरिओम सर,दुष्यन्त नागर, राजाराम देवा के मार्ग दर्शन में कार्तिक मेहनत कर रहा है। हरियाणा के इस लाल ने पदक की लगाम अपनी तरफ रखी है।
कुश्ती में महान खिलाड़ियों को देने वाला हरियाणा अब घुड़सवारी के खेल में भी अपनी पहचान बना रहा है। हाल ही में इक्वेस्ट्रियन फेडरेशन ऑफ इंडिया के तत्वावधान में आयोजित जूनियर नेशनल इक्वेस्ट्रियन चैंपियनशिप 2024 में हरियाणा के इस होनहार घुड़सवार ने शानदार प्रदर्शन किया।
इस प्रतियोगिता में लांसर्स इंटरनेशनल स्कूल के कार्तिक शर्मा, ने टीम सिल्वर मेडल जीतकर राज्य का नाम रोशन किया। यह प्रतियोगिता दिल्ली के आर्मी पोलो राइडिंग क्लब में आयोजित की गई थी।
प्रतियोगिता में पदक विजेताओं को सम्मानित करने के लिए भारतीय सेना के अतिरिक्त महानिदेशक मेजर जनरल आलोक बेरी उपस्थित थे। उन्होंने इन खिलाड़ियों की असाधारण उपलब्धियों को सराहा और इस आयोजन को और अधिक गौरवपूर्ण बनाया। इस प्रतियोगिता में पूरे भारत से 300 घुड़सवारों ने भाग लिया, जिसमें उनकी श्रेणी में 74 प्रतिभागी शामिल थे।
कार्तिक शर्मा ने 2022 में मध्य प्रदेश में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में टीम गोल्ड भी जीता था। वहां की तत्कालीन खेल मंत्री विजयराजे ने सम्मानित किया था।
12 साल की उम्र में ये प्रतिभाशाली खिलाड़ी अपनी मेहनत और कौशल से यह साबित कर रहे हैं कि वे घुड़सवारी के क्षेत्र में हरियाणा के भविष्य के सितारे बनेंगे। हरियाणा इस होनहार खिलाड़ी को विकसित करके इस खेल को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

 

ऐसा पहला मौका है, जब घुड़सवार हरियाणा का नाम रोशन कर रहे हैं। ये शौक के लिए बल्कि मेडल के लिए खेल रहे हैं, बचपन में देश के लिए ओलंपिक में मेडल की सोच इस बच्चे के जज्बे को प्रदर्शित करती है जो आज की पीढी को प्रेरणा भी है।

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